अपना हाथ जगन्नाथ
क्या हस्तमैथुन के लिए अपना हाथ जगन्नाथ वाक्य प्रयोग करना सही है? क्या ईशवर का हम अपमान तो नही कर रहे हैं।
Apna Haath Jagannath |
''अपना हाथ जगन्नाथ'' आज इस वाक्य पर थोङा विचार करते है,
आज हम इस वाक्य को जानते है समझते है...
और फिर विचार करते है कि हम इस वाक्यों को अब क्यों बोल रहे है और इसे सही बोलने पर भी लोग आप को भौंचका होकर क्यों देखते है।
आइयें अब ''अपना हाथ जगन्नाथ'' का शाब्दिक अर्थ समझने की कोशिश करते है,
इस वाक्य में आया शब्द ''जगन्नाथ'' जो की भागवान विष्णु या जग के पालनहार हरि का ही नाम है, इसके अर्थ पर हम कह सकते है की जगन्ननाथ का अर्थ है जग या संसार का पालनकर्ता ।
अब हम बात करते है इस वाक्य में आये शब्द ''हाथ'' की , हमारे पूरे शरीर का पालनकर्ता या ये कहा जाये की हमारे सभी काम करने वाला या कह सकते है कि जिसके द्वारा हम अपना सभी काम करते है वो हमारा हाथ है, हम कह सकते है कि हमारे शरीर का हरि या हमारा पालन-पोषण करने वाला हमारा हाथ ही है।
अब बात करते है शब्द ''अपना'' कि, कुछ लोग मानते है कि अपना शब्द सिर्फ खुद के शरीर के पालन-पोषण या खुद के कार्य के लिऐ ही आता है परन्तु ऐसा नही है जिस तरह हम कहते है की हरि के मुख में सम्पूर्ण ब्रमाण है और वो सभी अपना शब्द में आ जाते है उसी प्रकार जो व्यक्ति हम पर निर्भर है या जिसके प्रती भी हमार दायित्व है वो हमारे अंतर ही आ जाते है अर्थात अपना के हम दो अर्थ ले सकते है एक अपने लिए ,दूसरा अपनों के लिए ।
अब बात करते है पूरे वाक्य की, जहाँ तक मुझे लगता इतना सब जान कर इस वाक्य का सही मतलब आप सभी को समझ आगया होगा,
परन्तु अभी ना आया हो तो इस वाक्य का स्पष्ट अर्थ है ही की 'हमारा अपना हाथ ही हमारा ईश्वर है जो हमारी और हमारे अपनों की मदत कर सकता है' अर्थात कर्म ही सबसे बङा है और उस कर्म को करने वाला हमारा हाथ ही है
कहते है ना ईश्वर उसी की मदत करता है जो स्वंय अपनी मदत करता है, ईश्वर ने सभी को अपना हरि दिया है ताकि हर व्यक्ति स्वंय अपना और अपनों का पालन पोषण कर सके।
''अपना हाथ जगन्नाथ'' वाक्य पर हंसने वालों से अनुरोध है की वो विचार करे कहीं वो गलत तो नही हंस रहे कही अपने हरि का स्वंय अपमान तो नही कर रहे।
Janashruti &Team
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