` गीता सार ग्यारवां अध्याय “विश्वरूपदर्शनयोग”

गीता सार ग्यारवां अध्याय “विश्वरूपदर्शनयोग”

गीता सार ग्यारवां अध्याय विश्वरूपदर्शनयोग

गीता के ग्यारवें अध्याय का नाम विश्वरूपदर्शनयोग है। इसमें अर्जुन ने भगवान का विश्वरूप देखा। विराट रूप का अर्थ है मानवीय धरातल और परिधि के ऊपर जो अनंत विश्व का प्राणवंत रचनाविधान है, उसका साक्षात दर्शन। विष्णु का जो चतुर्भुज रूप है, वह मानवीय धरातल पर सौम्यरूप है। कृष्ण अर्जुन से कहते हैं जो व्यक्ति सब कुछ मेरा समझ कर यज्ञ, दान और तप आदि सभी कर्मों को करता है और जो मेरे को परम आश्रय और परम गति के प्राप्ति के लिए तत्पर रहता है तथा मेरे नाम, गुण, प्रभाव का जप करता है वह सब ओर से मुझे ही प्राप्त करता है।

short geeta saar in hindi, geeta saar in hindi in short

जब अर्जुन ने भगवान का विराट रूप देखा तो उसके मस्तक का विस्फोटन होने लगा। दिशो न जाने न लभे च शर्मये ही घबराहट के वाक्य उनके मुख से निकले और उसने प्रार्थना की कि मानव के लिए जो स्वाभाविक स्थिति ईश्वर ने रखी है, वही पर्याप्त है।

Janshruti & Team | nisha nik''ख्याति''

Post a Comment

0 Comments