मृत्यु अंत नही शुरूआत | Think Positive
मृत्यु अंत नहीं शुरूआत भी हो सकती है जीवन समझने का नजरिया चाहिए की मृत्यु हुई किसकी और जीवित कौन ।
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अगर मृत्यु शरीर की होती है तो हम कह सकते है कि ये अंत है। अंत का एक दूसरा पहलू भी होता है जब हम अपने जीवन में जीने की सभी आशाओं को छोङ देते है, हमार खुद का शरीर, हमारी आत्मा पर बोझ समझ आने लगता है, हम अंदर तक निराशा से भर जाते है और हर पल हम अपने अंत को अपने करीब लाने की कोशिश करते है। ये अवस्था एक ऐसी स्थिती को जन्म देती है जो हमारे अंत का हमें ऐहसास करवाती है। अगर मैं आसान शब्दों में अपनी बात को कहूँ तो इस अवस्था से खुद को निकालना और फिर से अपने जीवन को जीने की आशाओं से भरना ही मृत्यु से अंत नही शुरूआत है। शुरूआत है एक आशावादी सोच की, शुरूआत है अपनी कमियों से, कमजोरियों से ऊपर उठ कर जीवन जीने की, और यहाँ पर मृत्यु है उस निराशावादी सोच की जो हमे अपने ही जीवन में शरीर के साथ मृत्त होने का आभास कराती है, यहाँ मृत्यु है निराशा से भरे उस अंधकार की जिसने हमें जीवन जीने की आशाओं से दूर कर दिया है।
आसान शब्दों में कहा जायें तो जीवन, जीवन जब तक है जब तक उस में जीनें की उमंग हो अपनी हर कमी के साथ ,खुद को अपना कर, अपनी कमियों से ऊपर उठ कर, जीवन को सिर्फ सांसे ना समझ कर, आभार ईश्वर के प्रती जिसने सांसे दी, जीवन को लक्ष्य के साथ जीना सही रूप में जीवित रहना है ।
Janshruti & Team
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