गीता सार छठा अध्याय “आत्मसंयम”
गीता के छठे अध्याय का नाम आत्मसंयम योग है
जिसका विषय नाम से ही प्रकट है। जितने विषय हैं उन सबसे इंद्रियों का संयम-यही
कर्म और ज्ञान का निचोड़ है। सुख में और दुख में मन की समान स्थिति, इसे
ही योग कहते हैं। कृष्ण इस अध्याय में समझाते है कि मनुष्य को वासना और
आसक्तिसहिता को त्यागकर और मन तथा सभी इंद्रियों पर अच्छी प्रकार से संयम पाना
चाहिए क्योंकि जिसका मन पूरी तरहा शांत होता है, वही उत्तम शांती प्राप्त करता है।
कृष्ण ने कहा है, योगी वही है जो हर परिस्थिति को, सभी जीव को सम भाव से देखता है,
जिसके लिए सुख और दुख दोनों ही समान है। ना वो लाभ होने पर खुशी मनाता हो, ना ही
हानि होने पर शोक करता है बस हर तरहा से अपने कर्म को करता है।
Janshruti & Team | nisha nik''ख्याति''
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