` आयुर्वेद में क्या है पित्त दोष, प्राकृतिक तरीकों से कैसे करें इसे संतुलित

आयुर्वेद में क्या है पित्त दोष, प्राकृतिक तरीकों से कैसे करें इसे संतुलित

आयुर्वेद में क्या है पित्त दोष, प्राकृतिक तरीकों से कैसे करें इसे संतुलित

आयुर्वेद के अनुसार व्यक्ति के  शरीर में तीन प्रकार के दोष पाये जाते है वात, पित्त और कफ जिनके आधार पर व्यक्ति की प्राकृति को निर्धारित किया जाता है। पित्त का अर्थ होता है गर्मी एवं पित्त अग्नि और जल दोनों का तत्‍व होता है। पित्त गर्म, तैलीय, तरल और बहता हुआ होता है। पित्त हमारे पाचन को नियंत्रित करता है, शरीर के तापमान को बनाए रखता है, त्‍वचा की रंगत,बुद्धि और भावनाओं पर भी पित्त का प्रभाव होता है। पित्त में असंतुलन आने के कारण व्‍यक्‍ति शारीरिक और भावनात्‍मक रूप से अस्‍वस्‍थ होने लगता है।  

पित्त दोष का इलाज

पित्त के असंतुलित होने से ज्‍यादा भूख और प्‍यास लगना, संक्रमण, बाल झड़ना या बालों का सफेद होना, हार्मोनल असंतुलन, माइग्रेन, गर्मी लगना, कुछ ठंडा खाने या पीने की इच्‍छा करना, मुंह से बदबू आना, गले में खराश, खाना न खाने पर जी मितली, अनिद्रा, स्‍तनों या लिंग को छूने पर दर्द होना, माहवारी के दौरान दर्द होना या ज्‍यादा खून आना शामिल है। इसके अलावा धैर्य कम होना, चिड़चिड़ापन, नाराज़गी, ईर्ष्या द्वेष, अस्थिरता की भावना होती है।

पित्त दोष का इलाज

पित्त को कैसे करें संतुलित.....

कड़वी, कसैली और मीठी चीजें खाएं। पित्त को शांत करने में घी, मक्‍खन और दूध लाभकारी होते हैं। खट्टे फलों की बजाय मीठे फलों का सेवन करें। इसमें शहद एक अच्‍छा विकल्‍प है। ज्‍यादा शारीरिक गतिविधियों या अधिक आराम करने से बचें। आपको न तो बहुत ज्‍यादा काम करना है और न ही बहुत ज्‍यादा आराम। संतुलित आहार लें और दोस्‍तों से खूब बातें करें। कुछ समय प्रकृति के साथ बिताएं।

पित्त दोष का इलाज

मेडिटेशन या ध्‍यान पित्त को संतुलित करने का सबसे अच्‍छा तरीका माना जाता है। इसके अलावा जो भी काम आपको पसंद है वो करें और ज्‍यादा से ज्‍यादा खुश रहने की कोशिश करें। आप योग की मदद से भी पित्त दोष को संतुलित कर सकते है, जैसे मार्जरीआसन, शिशु आसन, चंद्र नमस्‍कार, उत्‍कतासन, भुजंगासन, विपरीत शलभासन, पश्चिमोत्तासन, अर्ध नौकासन, अर्ध सर्वांगासन, सेतु बंधासन और शवासन कर सकते हैं।

Janshruti & Team | nisha nik''ख्याति''

Post a Comment

0 Comments