` गीता सार आंठवा अध्याय “अक्षरब्रह्मयोग”

गीता सार आंठवा अध्याय “अक्षरब्रह्मयोग”

गीता सार आंठवा अध्याय अक्षरब्रह्मयोग

short geeta saar in hindi, geeta saar in hindi in short

गीता के आंठवे अध्याय का नाम अक्षरब्रह्मयोग है। उपनिषदों में अक्षर विद्या का विस्तार हुआ। गीता में उस अक्षरविद्या का सार कह दिया गया है-अक्षर ब्रह्म परमं, अर्थात् परब्रह्म की संज्ञा अक्षर है। मनुष्य, अर्थात् जीव और शरीर की संयुक्त रचना का ही नाम अध्यात्म है। जीवसंयुक्त भौतिक देह की संज्ञा क्षर है और केवल शक्तितत्व की संज्ञा आधिदैवक है। देह के भीतर जीव, ईश्वर तथा भूत ये तीन शक्तियाँ मिलकर जिस प्रकार कार्य करती हैं उसे अधियज्ञ कहते हैं। कृष्ण ने गीता दो श्लोकों में (८।३-४) इन छह पारिभाषाओं का स्वरूप बाँध दिया है। गीता के शब्दों में ॐ एकाक्षर ब्रह्म है (८।१३)।

(८।३-४), इस श्लोक में कृष्ण कहते हैं, शरीर रूप में मैं वासुदेव ही विष्णुरुप से अधियज्ञ हूँ।
(८।१३), इस श्लोक में कृष्ण कहते हैं, जो पुरूष इस एक अक्षररूप ब्रह्मा को उच्चारण करता हुआ और उसके अर्थस्वरूप मेरे को चिन्तन करता हुआ शरीर को त्याग कर जाता है, वह पुरूष परमगति को प्राप्त करता है।

Janshruti & Team | nisha nik''ख्याति''

Post a Comment

0 Comments