गीत सार तीसरा अध्याय “कर्मयोग”
गीत के तीसरे अध्याय का नाम कर्मयोग है। सांख्ययोग
की व्याख्या सुनकर कर्मयोग नामक तीसरे अध्याय में अर्जुन ने इस विषय में स्पष्ट
प्रश्न किया कि सांख्य और योग इन दोनों मार्गों में आप किसे अच्छा समझते हैं और
क्यों नहीं यह निश्चित कहते कि मैं इन दोनों में से किसे अपनाऊँ? इस
पर कृष्ण ने भी उतनी ही स्पष्टता से उत्तर दिया कि लोक में दो निष्ठाएँ या
जीवनदृष्टियाँ हैं-सांख्यवादियों के लिए ज्ञानयोग है और कर्ममार्गियों के लिए
कर्मयोग है। यहाँ कोई व्यक्ति कर्म छोड़ ही नहीं सकता। प्रकृति तीनों गुणों के
प्रभाव से व्यक्ति को कर्म करने के लिए बाध्य करती है। कर्म से बचनेवालों के प्रति
एक बड़ी शंका है, वह यह कि वे ऊपर से तो कर्म छोड़ बैठते हैं पर
मन ही मन उसमें डूबे रहते हैं।
यह स्थिति असह्य है और इसे कृष्ण ने गीता में
मिथ्याचार कहा है। मन में कर्मेद्रियों को रोककर कर्म करना ही सरल मानवीय मार्ग
है। कृष्ण ने चुनौती के रूप में यहाँ तक कह दिया कि कर्म के बिना तो खाने के लिए
अन्न भी नहीं मिल सकता। फिर कृष्ण ने कर्म के विधान को चक्र के रूप में उपस्थित
किया। न केवल सामाजिक धरातल पर भिन्न व्यक्तियों के कर्मचक्र अरों की तरह आपस में
पिरोए हुए हैं बल्कि पृथ्वी के मनुष्य और स्वर्ग के देवता दोनों का संबंध भी
कर्मचक्र पर आश्रित है। प्रत्यक्ष है कि यहाँ मनुष्य कर्म करते हैं, कृषि
करते हैं और दैवी शक्तियाँ वृष्टि का जल भेजती हैं। अन्न और पर्जन्य दोनों कर्म से
उत्पन्न होते हैं। एक में मानवीय कर्म, दूसरे में दैवी
कर्म। फिर कर्म के पक्ष में लोकसंग्रह की युक्ति दी गई है, अर्थात्
कर्म के बिना समाज का ढाँचा खड़ा नहीं रह सकता। जो लोक के नेता हैं, जनक
जैसे ज्ञानी हैं, वे भी कर्म में प्रवृत्ति रखते हैं। कृष्ण ने
स्वयं अपना ही दृष्टांत देकर कहा कि मैं नारायण का रूप हूँ, मेरे लिए
कुछ कर्म शेष नहीं है। फिर भी तंद्रारहित होकर कर्म करता हूँ और अन्य लोग मेरे
मार्ग पर चलते हैं। अंतर इतना ही है कि जो मूर्ख हैं वे लिप्त होकर कर्म करते हैं
पर ज्ञानी असंग भाव से कर्म करता है। गीता में यहीं एक साभिप्राय शब्द बुद्धिभेद
है। अर्थात् जो साधारण समझ के लोग कर्म में लगे हैं उन्हें उस मार्ग से उखाड़ना
उचित नहीं, क्योंकि वे ज्ञानवादी बन नहीं सकते, और
यदि उनका कर्म भी छूट गया तो वे दोनों ओर से भटक जायँगे।
गीता के तीसरे अध्याय में कृष्ण ने कर्म की विशेषता को बताया है और कहा है बिना कर्म के
कोई भी जीव नहीं रह सकता है। हर जीव को अपना निहीत कर्म करना ही होता है।
Janshruti & Team | nisha nik''ख्याति''
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